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Saturday 8 February 2014

बनिए वफादार, न कि 'बेवफा सनम'...



आज की तेज रफ्तार जिंदगी में एक ओर तो 'वफा', 'सच्‍चा प्‍यार' और 'उसूल' जैसे शब्‍द विलुप्‍त होते नजर आ रहे हैं, लेकिन दूसरी ओर इनकी प्रासंगिकता पहले से कहीं ज्‍यादा बढ़ गई है.


अपने जीवनसाथी से उम्रभर 'वफा' करने पर हम खुद तो स्‍वस्‍थ, सबल बनते ही हैं, यह नई पीढ़ी के लिए भी 'आदर्श' का काम करती है.


यह अलग बात है कि आज के दौर में विवाहेतर संबंधों के मामलों में इजाफा हो रहा है.


बात तो यहां तक पहुंच चुकी है कि लोग इसे आधुनिक जीवनशैली की उपज मानकर इसे ज्‍यादा असहजता से नहीं लेते.


फिर भी पुराने सिद्धांतों की अहमियत पहले की तरह बरकरार है.

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